वित्तीय वर्ष २२-२३ में देश में एक करोड़ से ज्यादा की आय दिखाने वाले २२०००० करदाता पाए गए जबकि यही संख्या वित्तीय वर्ष २०१२-१३ में ४०००० थी।
हालांकि मंहगाई भी पिछले ११ वर्षों ५ गुना बढ़ी है, तो उस हिसाब से करोड़पति करदाताओं का ५ गुना बढ़ना कोई विशेष उपलब्धि नहीं कही जा सकती। लेकिन हैरानी की बात यह है कि पिछले ३ वर्षों में ऐसे करदाताओं की संख्या १००००० से अधिक बढ़ी है , तो क्या कारण हो सकते हैं:
१. सबसे पहला पिछले ३ वर्षों में शेयर बाजार में सबसे अधिक बढ़त होने के कारण लोगों की आय में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण है।
2. इसके अलावा डिविडेंड आय को टैक्स के दायरे में लाने से करदाताओं की आय बढ़ी है।
3. कुछ सेक्टर की कुछ खास कंपनियों के लाभ में काफी इजाफा हुआ है जिससे प्रबंधकों के वेतन में काफी बढ़त हुई है।
4. एआई टेक्नोलॉजी सेक्टर, रियल एस्टेट क्षेत्र, पैशेवर, स्टार्ट अप, ग्रीन एनर्जी, हास्पिटैलिटी, ट्रेवल, टूरिज्म, आदि सर्विस सेक्टर में नौकरियां और वेतनमान काफी बढ़ा है।
५. आयकर नियमों में कड़ाई और सिस्टम बेस्ड सूचना तंत्र से भी आय छुपाना मुश्किल हो गया है।
करोड़पति करदाताओं का बढ़ना क्या यह माना जाए कि करों का संग्रह बढ़ा है? ऐसा प्रतीत होता नहीं लगता –
१. सबसे पहले टैक्स देने वाले करदाता आज भी वही है जो पहले देते थे – कहने का मतलब यह कि ८ करोड़ आयकर विवरणी में मात्र १.५ करोड़ करदाता ही टैक्स भरते हैं और इन्ही की आय बढ़ रही है।
2. आय असमानता आज भी देश में व्याप्त है और आज भी ४०% से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा में है।
3. टैक्स जीडीपी अनुपात आज भी १०-१२ प्रतिशत है जो पहले भी वर्ष २००८-०९ में उतना ही था।
साफ है सही मायनों में टैक्स और आय की ग्रोथ सिर्फ कुछ सेक्टर और कुछ करदाताओं तक ही सीमित है और शायद इसीलिए सरकार भी पूरे आयकर कानून की पुनः समीक्षा कर रही है।
*सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर