*_मोदी का चेहरा, शाह की रणनीति, नड्डा की मेहनत से ‘ झाड़ू’ के बिखरे तिनके
_बड़ी हार के बाद सदमें में केजरीवाल, अब पार्टी और पंजाब को बचाने की चुनोती_
*_लोकसभा चुनाव के कमज़ोर प्रदर्शन के बाद महज 9 महीने में टॉप 3 चुनाव जीतकर फ़िर शिखर पर पहुँचीं मोदी-शाह की जोड़ी_
_कांग्रेस के लिए डूब मरों की स्थिति, तीसरी बार शून्य सीट, ज़ीरो की लगाई डबल हैट्रिक, तीन लोकसभा चुनाव में भी शून्य l
_आप की झाड़ू जैसा तिनके तिनके हुआ भाजपा के ख़िलाफ़ बना इंडी गठबंधन, उमर अब्दुल्ला बोले- और लड़ो आपस में_
*_’मफलरमैन’ को ‘ शराब ‘ ले डूबी या ‘ शीशमहल ‘ या उनके ‘ मुग़ालते ‘ ले डूबे? ये विश्लेषण तो कल से हो रहें हैं और आने वाले कल-परसों तक होते रहेंगे। लेक़िन जिस तरह से एक दल को मतदाताओं ने ‘आप ‘ से ‘ आपदा ‘ माना, वह गौर करने लायक हैं। जो ‘आप’ थे, वे ‘ तुम ‘ या ‘ तू ‘ भी होते तो मतदाताओं से नजदीकी ही क़रार दी जाती। क्योंकि भारत मे आत्मीय रिश्तों में ‘ आप ‘ शब्द दूरी पैदा करता हैं, ‘तुम ‘ और ‘ तू ‘ नजदीकी का अहसास दिलाता है। लेक़िन किसी दल का वोटर्स के समक्ष ‘आप’ से ‘आपदा’ हो जाना हैरत का विषय है और वह भी तब, जब वोटर्स को मुफ़्त का बहुत कुछ मिलता हो, उस दल से जिसे वह ‘ आप ‘ मानता हो। अब इसे ‘ आपदा ‘ से मुक्ति मान ‘ अन्ना ‘ भी खुश हैं, ‘ कुमार ‘ भी गदगद हैं और ‘ ज़ीरो बटा सन्नाटा’ वाले भी प्रसन्न हैं। दिल्ली तो दिल दिखा ही चुकी हैं। तो क्या वाकई आप, आपदा में परिवर्तन हो गई थी? प्रधानमंत्री ने इसे सबसे पहले भांपा। आपदा जुमला वो ही तो लाये थे। जुमला कारगर साबित हुआ।_
_..कल्पना नही की होगी ‘मफ़लर मेन’ ने कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आम आदमी पार्टी को दिया गया नया नामकरण ‘ आपदा ‘ इतना कारगर साबित हो जाएगा। न ये उम्मीद थी कि दिल्लीवासी इस नाम को दिल पर ले लेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी के इसी नए नामकरण के साथ दिल्ली चुनाव में इंट्री की थी। उनकी पहली ही सभा में, उन्होंने ‘आप’ को दिल्ली के लिए ‘ आपदा ‘ करार दिया था। तब ये शब्द महज़ जुमला नज़र आया था। लेक़िन जैसे जैसे चुनाव आगे बढ़ा, आप..वाकई आपदा में तब्दील होती गई। जनसामान्य की जुबां तक ये शब्द पहुँच गया। परिणाम ये रहा कि दिल्ली से ‘ आपदा ‘ चली गई और भाजपा आ गई। अब ‘ सर जी ‘ सन्नाटे में हैं कि ये क्या हो गया। ‘ आपदा ‘ बनते ही ‘ आप ‘ यानी समूची पार्टी भी ‘ सन्निपात ‘ में हैं कि अब क्या करें? पार्टी भी बचाना हैं और पंजाब भी। जो 22 जीते हैं, उन्हें भी सहेजना हैं। इन सब चिंताओं के बीच ‘ कॉमन मेन’ का दिन का चेन, रात की नींद हराम होना शुरू हो गई हैं।_
*_…दिल्ली की ये जीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे, गृह मंत्री अमित शाह की रणनीति और पार्टी अध्यक्ष जयप्रकाश नड्डा की मेहनत का प्रतिफ़ल हैं। तीनों नेताओं की जुगलबंदी से आप की झाड़ू के तिनके बिखेर दिए और स्वयम की पार्टी का 27 साल का सत्ता का सूखा दूर कर दिया। अब कमलदल ‘ इंद्रप्रस्थ ‘ के ‘ सिंहासन’ पर विराजमान हैं और वो भी पूरे रुतबे के साथ। भाजपा 8 से 48 हो गई और आप 62 से 22 पर आ गई। कांग्रेस का तो कोई ‘ पुरसाने-हाल’ ही नही रहा। वह लगातार तीसरे विधानसभा चुनाव में अपना खाता नही खोल पाई। ऐसी ‘ दुर्गति ‘ तो ‘ दीपक ‘ के समय ‘ जनसंघ ‘ की भी नही रही। कांग्रेस ने दिल्ली में शून्य की डबल हैट्रिक मार ली। तीन विधानसभा चुनाव 2015, 2020 और 2025 में वह शून्य रही। तीन लोकसभा चुनाव 2014, 2019 और 2024 में भी वह दिल्ली की सातों सीट में से एक पर भी खाता नही खोल पाई। राहुल गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी के लिए इससे शर्मनाक और क्या होगा कि उनके दल के 70 उम्मीदवारों में से 67 अपनी जमानत भी नही बचा पाए। यानी सबकी ज़मानत ज़ब्त हो गई। फ़िर भी कांग्रेस खुश हैं कि उसने आम आदमी पार्टी से हरियाणा हार का बदला ले लिया।_*
———————
*हार कर भी ‘ जिंदा ‘ हो गई कांग्रेस..!!*
_पार्टी की खुशी का एक कारण ये भी हैं कि वह दिल्ली एक बार फ़िर भले ही हार गई लेक़िन वह हार कर भी ‘ जिंदा ‘ हो गई। क्योंकि आप के ‘ मरण ‘ में ही कांग्रेस का ‘ जीवन ‘ हैं। आप ने ही कांग्रेस के वोट कब्जाए और वह दिल्ली में भाजपा के समक्ष देश की सबसे पुरानी पार्टी का विकल्प बनकर न सिर्फ उभरी, बल्कि 10 साल राज भी किया। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस ने एक तरह से भाजपा की ही अपरोक्ष रूप से मदद की। कांग्रेस ने इस चुनाव में 6 फीसदी से ज़्यादा वोट पाए, जो बीते चुनाव की तुलना में 2 प्रतिशत ज्यादा थे। इसी 2 प्रतिशत के अंतर से ही तो भाजपा-आप मे हार जीत हो गई। आम आदमी पार्टी से महज़ 2 फीसदी ज़्यादा वोट पाकर भाजपा ने राजधानी में प्रचण्ड जीत हासिल कर ली। भाजपा को जहाँ 45.56 प्रतिशत, तो आप को 43.57 फ़ीसदी वोट मिला। ये 2 प्रतिशत का अंतर पट जाता तो? कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ केजरीवाल को करारा सबक सिखाया।_
———————-
*मोदी-शाह की जोड़ी भारत की राजनीति में फ़िर टॉप पर*
*_महज़ 9 महीनें में टॉप के तीन चुनाव जीतकर मोदी-शाह की जोड़ी भारतीय राजनीति में फ़िर शीर्ष पर जा पहुँचीं। 9 महीनें पहले लोकसभा चुनाव में भाजपा के कमजोर प्रदर्शन ने इस जोड़ी को गहरा आघात पहुचाया था। विपक्षी ही नही, भाजपा के अंदर भी मोदी शाह विरोधी कैम्प खुश हुआ था कि चलो ‘ जुगलजोड़ी’ पर लगाम तो लगी और अब इस जोड़ी की ‘ मुश्के ‘ कसना आसान होगा। लेक़िन दोनों ‘ गुजरातियों ‘ से पार पाना इतना आसान कहा? लोकसभा चुनाव में बहुमत से दूर 240 सीट पर सिमटने के बाद जुगलजोड़ी ने अपनी रणनीति में तेज़ी से बदलाव किया। नतीज़ा सामने हैं। सबसे पहले लगभग हारी हुई बाज़ी हरियाणा में जीती। फ़िर महाराष्ट्र जैसा बड़ा राज्य में भगवा फहराया और अब दिल्ली का दिल जीत लिया। ये सब महज़ 9 महीनें में हुआ और जो ये मान रहे थे कि मोदी शाह के दिन ‘ लद’ गए, उनके सामने फ़िर जोड़ी का विराट क़द खड़ा हो गया। प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी लोकसभा चुनाव के परिणाम को आधार बता बताकर मोदी के सीने के नाप को सिकुड़ना करार देते फ़िर रहें थे। दिल्ली चुनाव के बाद वह सीना फिर से फूलकर कुप्पा हो गया। वह फ़िर ‘ 56 इंची’ हो गया। ‘ 99 सीट’ की गरमी भी सीने का नाप सालभर भी कम नही कर पाई, न संविधान की प्रति, मनुस्मृति का ‘राहुल राग’ असर दिखा पाया।_*