इंदौर  समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे केस की सुनवाई के बीच गुरुवार को समलैंगिक विवाह के विरोध में विभिन्न सामाजिक संगठन एकजुट हुए। इसके विरोध में 650 महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के नाम कलेक्टर इलैया राजा टी को कलेक्टर कार्यालय पहुंचकर हस्ताक्षित ज्ञापन दिया। इस मौके पर हाथों में तख्तियां लिए पहुंची महिलाओं का कहना था कि यह समलैंगिक विवाह भारतीय विवाह संस्कार पर अंतराष्ट्रीय आघात है।

ज्ञापन में कहा गया है कि भारत ही नहीं, सभी एशियाई देशों में विवाह कानूनी कांट्रेक्ट नहीं, अपितु संस्कार है। यह दो शरीरों का मिलन नहीं, दो परिवारों का विस्तार है। यह भारत की परिवार व्यवस्था ही है जिसके कारण सैकड़ों विदेशी आघातों के बाद भी भारतीय परंपरा व संस्कृति जीवित है। अंग्रेजों द्वारा हुए सांस्कृतिक हमलों, षड्यंत्रों के बाद भी भारतीय समाज अपनी अस्मिता की रक्षा करता हुआ संगठित है। इसी प्राचीन परिवार व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने की साजिश सुप्रीम कोर्ट की आड़ में की जा रही है।

जनप्रतिनिधियों को लेने दे निर्णय

 

ज्ञापन में कहा कि सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या करने की संवैधानिक शक्ति का सम्मान करते हुए हम विनम्रता से यह कहना चाहते हैं कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देना कानूनी मुद्दा होने के साथ एक जटिल सामाजिक मुद्दा भी है। इस जटिल मुददे पर जनता द्वारा चुने गए जन प्रतिनिधियों के माध्यम से केवल विधायिका को ही निर्णय लेने दिया जाए। इसके साथ ही समाज के विभिन्न समूहों व सामाजिक-धार्मिक नेतृत्व से गंभीर विचार-विमर्श के उपरांत ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचा जाए। स्पेशल मैरिज एक्ट के साथ साथ कई और प्रचलित कानूनों में बदलाव करना की आवश्यकता है।

विभिन्न समाजों के लोग पहुंचे थे विरोध दर्ज कराने

ज्ञापन में कहा गया है कि सामाजिक स्तर पर भी समलैंगिक विवाह को मान्यता हमारी स्थापित परिवार संस्था को विपरीत रूप से प्रभावित करेगी। इसमें जैन, मुस्लिम, यादव, सिंधी, मुस्लिम, सिख, कलचुरी, कुशवाह, माली,, राजपूत, भावसार आदि समाज के साथ विभिन्न संगठनों के लोग मौजूद थे। ज्ञापन का वाचन अधिवक्ता निधि वारा ने किया। इस मौके पर अधिवक्ता अनुष्का भार्गव, मोनिका पुरोहित, प्रिंयका मोक्षमार, रीना खुराना, रशीदा शेख, जरीना खाना, प्रतीक्षा अय्यर, सौम्य उपाध्याय आदि मौजूद थे।