डॉ. मयंक चतुर्वेदी:
दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर यह पहले से ही सभी जान रहे थे कि आम आदमी पार्टी से कोई मुकाबला कर सकता है तो वह सिर्फ भारतीय जनता पार्टी है। मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती गई सभी ने देखा भी, जो एक लम्बी खाई आप और अन्य राजनीतिक दलों के बीच दिल्ली में थी, उसे कम से कम भाजपा बहुत हद तक दूर करने में सफल रही। लेकिन भाजपा या कांग्रेस जो नहीं कर पाई वह है अरविन्द केजरीवाल की तरह लोक लुभावने वादे। जो वादे किए भी वह उनपर जनता का भरोसा नहीं जीत पाई।
दिल्ली की सियासी जंग फतह करने के लिए आज आप तीनों प्रमुख राजनीतिक दलों आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के लोकलुभावन वादों की झड़ी लगा देनेवाले घोषणापत्रों की तुलना कर सकते हैं। साधारण बुद्धि रखनेवाला भी यह समझ जाएगा कि सबसे अधिक लोभ और लालच किसके घोषणापत्र में है। फिलहाल, दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की हार एवं कांग्रेस का खाता तक नहीं खुलने पर जो राजनीतिक समीक्षाएं की जा रही हैं, उनमें यह भी ध्यान देने योग्य है कि राष्ट्र की समस्याएं समान होती हैं, संविधान राष्ट्र को फोकस कर निर्देश अधिक देता है, जिन विषयों पर भाजपा का दिल्ली में फोकस दिखाई दिया, वह राष्ट्रीय अधिक रहे हैं।
दिल्ली देश की राजधानी है, हो सकता है कि इसलिए भाजपा के रणनीतिकारों ने समझा हो कि राष्ट्रीय विषय दिल्ली की आम जनता अधिक समझेगी लेकिन ऐसा इस चुनाव में देखने को नहीं मिला है। कहना यही होगा कि दिल्ली की अधिकांश जनता को बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों से कोई फर्क नहीं पड़ता है, फिर वे दिल्ली में आकर कानून व्यवस्था भंग करें या देश के संसाधनों का उपयोग कर भारत के आम नागरिकों के अधिकार छीनें। इस चुनाव के परिणामों ने यह भी बता दिया कि यहां की जनता को जम्मू-कश्मीर का केन्द्रीयकृत करना, देश के सभी नागरिकों के लिए समान रूप से कश्मीर के द्वार खोल देनेवाले निर्णय वहां से धारा 370-35ए हटाने से भी उसका कोई लेना-देना नहीं। कश्मीर के रास्ते आनेवाले आंतकवादियों को रोक पाने में केंद्र की भाजपा सरकार की सफलता भी उसके लिए कोई मायने नहीं रखती। अल्पसंख्यकों की जिस आधी जनसंख्या को तलाक जैसे क्रूरतम रिवाज से बाहर निकालने का काम मोदी सरकार ने किया, उसे भी दिल्ली की जनता स्थानीय स्तर पर अपने लिए कोई मुद्दा नहीं मानती है। हां, जिस शाहीन बाग का जिक्र इस पूरे विधानसभा चुनाव के दौरान बार-बार आया, उस धरने का अवश्य ही सीधा असर यहां देखने का मिला है। नागरिक सशोधन कानूनल (सीएए) और एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को जो मुसलमान अब तक समझ नहीं सके हैं, उन्हें इस धरने ने अवश्य ही पूरी दिल्ली में एकजुट करके रखा। मतदान के समय भी यह एकता स्पष्ट तौर पर दिखी।
कुल मिलाकर दिल्ली के चुनाव में जो सबसे अधिक प्रभावी बात दिखाई दी है, वह है फ्री का जितना अधिक बटोरा जा सकता है उसे बटोर लो। इस संदर्भ में भारतीय दर्शन का एक प्रसिद्ध श्लोक याद आता है, ‘यावज्जजीवेत सुखं जीवेत ऋण कृत्वा घृतं पीबेत। भस्मी भूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुत:”। ‘जबतक जियो सुख से जियो कर्ज लेकर घी पियो शरीर भस्म हो जाने के बाद वापस नही आता है।‘ सदियों पुराना भोगवादी चार्वाक दर्शन आज देश की आर्थिक नीतियों की नसों मे लहू बनकर दौड़ रहा है। व्यवस्था बिना श्रम के आये धन, फिर वह किसी भी रूप में क्यों न हो, मुफ्त बिजली, पानी, बस का सफर इत्यादि उसकी दीवानी है। वाकई में हम अपने तक सीमित सोच में यह भूल चुके हैं कि इसका असर आने वाले दिनों पर कितना भारी है। वस्तुत: आम आदमी पार्टी के घोषणापत्र को इस नजरिए से प्रमुखता के साथ देखा जा सकता है।
दिल्ली चुनाव पूर्व आप की घोषणा थी कि यदि जीतकर आए तो पांच साल तक 200 यूनिट मुफ्त बिजली जारी रहेगी। दिल्ली में 10 लाख बुजुर्गों को फ्री तीर्थयात्रा कराई जाएगी। हर महीने 20 हजार लीटर पानी मुफ्त में मिलेगा। दिल्ली में फ्री चिकित्सा व्यवस्था मिलेगी। महिलाओं के साथ-साथ स्टूडेंट्स के लिए भी मुफ्त यात्रा करो। झुग्गी बस्तियों में रहने वाले लोगों को फ्री में पक्के मकान की फुल गारंटी दी जाती है। दिल्ली में राशन की डोर स्टेप डिलीवरी शुरू दी जाएगी, ध्यान रहे बीपीएल के लिए। पुनर्वास कॉलोनियों के लिए मालिकाना हक दे दिया जाएगा।
इसबार के चुनाव परिणाम स्पष्ट करते हैं कि भारतीय राजनीति चार्वक के दर्शन की ओर जा रही है। लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा अब बदल चुकी है। वर्तमान में सिर्फ बहुत जरूरतमंद की सहायता करने को सहयोग नहीं माना जाता, जो सभी को लोक लुभावन सपने दिखाए, फ्री में स्कीम बांटे, सच पूछिए तो आज के दौर में वही हिट है। शायद यही वजह है कि दिल्ली में एकबार फिर अरविन्द केजरीवाल हिट हो गए और लाख देशसेवा करने का संकल्प लेकर चल रही बीजेपी यहां चारोंखाने चित हो गई।
(लेखक फिल्म सेंसर बोर्ड एडवाइजरी कमेटी के पूर्व सदस्य एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं।)