क्या कर प्रणाली ऐसी होनी चाहिये जो आम जनता पर चाबुक चलाए या ऐसी जो हित करें?
मंहगाई बेरोजगारी से तड़पती जनता पर और कर का बोझ क्यों?
क्या सरकार हमसे कुछ छुपा रही है क्योंकि एक तरफ तो बढ़ते राजस्व को उपलब्धि बताना और दूसरी तरफ आम वस्तुओं पर कर की दरें बढ़ाना?
क्यों राज्य सरकारें जो जीएसटी काउंसिल की सदस्य भी है, किसी की तरफ से कोई विरोध नहीं?
क्यों विपक्ष और मीडिया भी चुप है?
सारे सवालो के जबाब सिर्फ और सिर्फ एक बात पर केन्द्रित है जिसके बारे में न केन्द्र सरकार और न ही राज्य सरकारें बोलना चाहती है और वो है केन्द्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति राशि की मियाद जून 22 में खत्म होना. अब यदि राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति राशि नहीं मिलेगी तो वे जीएसटी का विरोध करेंगे और खर्च न चलने से उलजलूल नीति बनाऐंगे.
तो ऐसा रोकने के लिए, उन चीजों को कर के दायरे में ला दो जो देश का हर नागरिक उपयोग में लाता है और ऐसा करने से हर नागरिक कर के दायरे में आ जाएगा और सरकारें अपना खर्च आसानी से चलाती रहेंगी.
लेकिन कोई भी नौकरशाह या मंत्री या राजनेता इस बात की कोशिश नहीं करता कि राजस्व बढ़ाने के क्या और विकल्प हो सकते हैं, बस आम वस्तुओं पर कर का दायरा बढ़ा दो.
आम जनता तो सुनती रहेगी, भुगतती रहेगी, सहती रहेगी और खुश होती रहेगी कि हमारा धर्म तो सुरक्षित है. न कोई गलत कर नीति का विरोध करेगा, न ही मंहगाई पर बोलेगा और न ही गिरती अर्थव्यवस्था पर चिंता व्यक्त करेगा.
कोई भी आम व्यक्ति यह नहीं चाहता की हमारे हालात श्रीलंका जैसे हो और सब चीज फ्री में मिलें, लेकिन सरकार से उचित दाम पर उपलब्धता की मांग तो कर ही सकता है. सस्ती दरों पर खान पान, इलाज, शिक्षा उपलब्ध हो- ऐसा चाहना कोई गलत तो नहीं है और सरकार का भी यह कर्तव्य है कि अपनी अर्थ नीति एवं कर प्रणाली ऐसी बनाए जो आम व्यक्ति का हित करें.
आज से जिस तरह से जीएसटी संशोधन लागू होने जा रहे हैं, मानों ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार सभी को जीएसटी के दायरे में लाना चाहती है. इसमें व्यवहारिक परेशानी यह है कि हमारा 7.50 करोड़ व्यापारी वर्ग में से सिर्फ 1.50 करोड़ व्यापारी बढ़ा हैं और रजिस्टर्ड है, बाकी 6 करोड़ बहुत छोटा है और जिसे न टैक्स की जानकारी है और न ही वह किसी तरह का अनुपालन कर सकता है.
खाने पीने की वस्तुओं पर जीएसटी लग जाने से, ये व्यापारी किस तरह से बचें इस बारें में उपाय करेंगे क्योंकि रजिस्टर्ड होकर कर का अनुपालन करना इनके बस में नहीं है. ये तो जीवन यापन करने और परिवारिक चिंताओं को निपटाने में ही लगे रहते हैं.
सरकार अनुपालन के नियमों को सरल बनाने की बजाय और कठिन बनाती जा रही है. बड़े व्यापारी या उत्पादक या सबसे पहले स्तर पर टैक्स लगने के बाद कोई उस उत्पाद को कितनी भी बार बेचें, इस बारें में सरलीकरण जरुरी है.
- ब्रांडेड खाद्य पदार्थों पर तो जीएसटी पहले से ही था लेकिन अन ब्रांडेड, पैक्जैड पर टैक्स लगाना समझ से परे है. ऐसा होने से ग्राहक ब्रांडेड की ओर ज्यादा आकर्षित होगा और छोटे व्यापारी आहत होंगे.
- खुला सामान बेचना या ग्राहक के आंखों के सामने पैक कर देने से आटा, दाल, गेंहू, चावल, दूध, दही, छाछ, आदि जीएसटी से बाहर रहेंगे. तो अब ज्यादा यह ही होगा और ऐसा होने के वस्तुओं की क्वालिटी एवं आम जनता के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ना तय है.
- नमकीन पर कर दायरा 5% से 12% होना, नमकीन उद्योग को प्रभावित करेगा जिससे लाखों छोटे व्यापारी जुड़े हैं. अपना ब्रांड बनाना और नाम कमाने का उत्साह ऐसी कर प्रणाली में अब मुश्किल होगा और यह व्यापार आसान नहीं करेगा.
- मांग और उपभोग में कमी आने से सरकार के राजस्व में भारी असर पड़ेगा.
- आम जनता ऐसे संसाधन की कोशिश करेगी जिससे आम वस्तुओं पर टैक्स बचाया जा सकें. आज कार, एसी, फ्रिज, आदि खरीदने पर व्यक्ति टैक्स देने में आनाकानी नहीं करता लेकिन रोजमर्रा के उपभोग पर टैक्स लगाना असंवेदनशीलता दर्शाता है.
- रहवाश के लिए दिए गए किराये से मकान को भी कर दायरे में लाना एक गलत कदम है. सरकार का कहना है कि कई व्यापारियों ने खासकर पैशेवरों ने अपने घर के पते पर ही रजिस्ट्रेशन ले रखा है और ऐसे में अबसे वो जो भी किराया देंगे, उस पर रिवर्स चार्ज के तहत जीएसटी भरना होगा.
सरकार को समझना चाहिए कि ऐसा इसलिए हो रहा है ताकि काम भी हो जावे, सरकार को राजस्व भी मिल जावे और व्यापारी की लागत भी कम हो सकें.
मकान मालिक जो किराये की आमदनी पर जीता है, उसका घर भी किराये से चला जावे. अब टैक्स लगने से मकान मालिक की किराये की आमदनी पर प्रभाव तो पड़ेगा ही, साथ ही टैक्स का अनुपालन बढ़ने से अब किताबों में किराये के लेनदेन दिखाए ही नहीं जाएंगे और ऐसा होने से आयकर और जीएसटी दोनों के राजस्व में कमी आवेगी.
- बजट होटलों और अस्पतालों को जीएसटी दायरे में लाना, ऊपरी और कैश लेनदेन को ज्यादा बढ़ावा देगा.
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणाली का प्रारूप ऐसा होता है कि जिन लेनदेन पर जीएसटी की पहुँच नहीं होती वहाँ आयकर पहुँच जाता है, लेकिन दोनों में लाने की कोशिश करना और इसके लिए अनुपालनों की संख्या बढ़ाना न्यायसंगत और तर्कसंगत नहीं है.
- रोजमर्रा के उपभोग की वस्तुओं पर जीएसटी और बढ़ते अनुपालन के विरोध में रिटेल ट्रेडर्स एसोसिएशन आगामी 26 जुलाई को प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के समक्ष विरोध दर्ज कराने जा रहा है.
- व्यापार को आसान बनाने की बजाय कठिन बनाना, अनुपालनों की भरमार करना, आम जनता पर ज्यादा बोझ लादना, अप्रत्यक्ष रूप से बड़े उद्योगपतियों का साथ देना और छोटों पर ध्यान न देना सर्वथा अनुचित है.
व्यापारी टैक्स से बचने का उपाय सोचता है और सरकार उन उपायों पर टैक्स लगाने के नियम. यह चक्र सालों से चलता आ रहा है लेकिन इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता की कर प्रणाली सरल और मजबूत हो.
कर प्रणाली ऐसी हो जिसमें न करदाता कर देने से घबराएं और न ही सरकार का ध्यान सिर्फ इसके अनुपालन पर रहे. सरकार को समझना होगा व्यापार जितना आसान होगा, उतना ही वो बढ़ेगा और उतना ही राजस्व बढ़ेगा. मंहगाई बेरोजगारी भी कम होगी और जन कल्याण के लिए पैसे भी अधिक होंगे.
कठिन और कठोर नियमों से प्रजा को प्रोत्साहन नहीं, ढंड दिया जाता है और यदि सरकार को ऐसा लगता है तो फिर जीएसटी के माध्यम से आम जनता पर चाबुक चलाते रहिये.
सीए अनिल अग्रवाल