आखिर कब मिलेगी कोरोना वायरस से निजात? जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ

वो लोग जो अगले 3-6 महीनों के अंदर कोविड के खतरे से निजात पाने को लेकर कोई उम्मीद बनाए हुए हैं, उनके लिए बुरी खबर है, वैज्ञानिकों का कहना है कि जो हम भुगत चुके हैं उससे ज्यादा के लिए कमर कस कर रखें. महामारी के प्रकोप के चलते स्कूल फिर सें बंद होगें, क्लास फिर स्थगित होंगी, नर्सिंग होम में काम करने वाले स्टाफ जिन्हें टीका लग चुका है उन्हें दोबारा संक्रमित होने का डर बना रहेगा, कर्मचारी दफ्तर में दोबारा लौटने के डर में होंगे क्योंकि अस्पताल बुरी तरह से भरे होंगें.

महामारी के अंत होने तक लगभग सभी को या तो टीका लग चुका होगा या फिर वो संक्रमित हो चुके होंगे, इस बात को लेकर विशेषज्ञ एकमत है. हो सकता है कि कुछ ऐसे भी हों जिन्हें वायरस का सामना दो बार करना पड़ जाए, संक्रमण और नए वेरियंट का ये खेल तब तक चलता रहेगा जब तक या तो विश्व में सभी को टीका नहीं लग जाता या सभी का वायरस से संपर्क नहीं हो जाता.

एनडीटीवी की खबर के मुताबिक मिन्नेपोलिस में मिनेओस्टा यूनिवर्सिटी के इन्फेक्शियस डिजीस रिसर्च एंड पॉलिसी सेंटर के निदेशक और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बिडेन के सलाहकार माइकल ओस्टहोम का कहना है कि मेरे हिसाब कि दुनियाभर में लगतार ये उछाल देखने को मिल रहे हैं. ये फिर तेजी से कम हो जाएगा, और फिर हम इस साल सर्दियों में एक नया उछाल देखेंगे.

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वायरस के मरने की संभावना बहुत कम है और दुनियाभर में अभी भी करोड़ों लोग को वैक्सीन लगना रह गया है. ऐसे में इस बात की पूरी आशंका है कि कक्षाओं, सार्वजनिक परिवहन, और काम की जगह से आने वाले समय में फिर से कोरोना पैर पसार सकता है लेकिन आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाए रखने के लिए इसे चालू रखना भी ज़रूरी है. यहां तक अगर इम्यूनाइजेशन दर बढ़ भी जाती है तब भी ऐसे व्यक्ति हमेशा रहेंगे जो वायरस के प्रति कमजोर हों मसलन नवजात शिशु, ऐसे लोग जो वैक्सीन नहीं लगा सकते हैं या फिर ऐसे लोग जिन्हें वैक्सीन तो लग गई है लेकिन उनकी खुद का सुरक्षा तंत्र इतना मजबूत नहीं है. अगर कोई वैक्सीन प्रतिरोधी वेरियंट विकसित हो जाता है तो नई मुसीबत से निपटना होगा यानी आने वाले कुछ महीनें मुश्किल भरे होंगे. ओस्टरहोम का कहना है कि कोरोनावायरस उस जंगल की आग की तरह है जो तब तक शांत नहीं होगी जब तक ये इंसानी रूपी सारी लकड़ियों को ढूंढ नहीं निकाले, जो जल सकती हैं.

कोविड बनाम अन्य महामारी

डेनमार्क में रोस्क्लाइड यूनिवर्सिटी में पॉप्यूलेशन हेल्थ साइंस के प्रोफेसर और महामारीविद लोन साइमनसन के मुताबिक पिछले 130 सालों में हुए 5 इन्फ्लूएंजा महामारी के उचित तरह तैयार किए गए दस्तावेजों के ब्लूप्रिंट से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोविड किस तरह से काम करेगा ?
उनका कहना है कि सबसे लंबा चलने वाला फ्लू का प्रकोप पांच साल तक रहा , वहीं ज्यादातर में दो या तीन साल में औसतन संक्रमण की दो से चार लहर शामिल थीं. वहीं कोविड पहले से ही गंभीर महामारियों का आकार ले रहा है, इसके दूसरे साल के खत्म होने तक दुनिया तीसरी लहर की चपेट में हैं और अभी तक कोई अंत नहीं दिखाई दे रहा है.

इस बात की पूरी आशंका है कि सार्स कोवी -2 पिछली महामारियों की तरह रुख अख्तियार ना करे, वैसे भी ये उनसे अलग, नया और ज्यादा घातक और संक्रामक है. इसकी वजह से दुनियाभर में अभी तक 46 लाख मौतें दर्ज की जा चुकी हैं. 1918 में आए स्पेनिश फ्लू से लेकर लेकर तमाम दूसरे प्रकोप से ये दोगुना ज्यादा घातक है.

अमेरिका, यूके, रूस, और इजराइल जैसे देश जो टीकाकरण के मामले में अव्वल थे वहां अब दोबारा से मामलों में उछाल देखने को मिल रहा है. बस फर्क ये है कि वैक्सीन लगने की वजह से बीमारी गंभीर नहीं है बल्कि हल्का रूप दिखा रही है. लेकिन संक्रमण का बढ़ना ये बताता है कि वायरस युवा और ऐसे लोग जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है, उनके लिए घातक साबित हो सकता है .

मलेशिया, मैक्सिको, ईरान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश जहां टीकाकरण तितर-बितर रहा है. वहां अब घातक और संक्रामक डेल्टा वेरियंट के प्रकोप का खतरा मंडरा रहा है. ये वही वेरियंट है जो अभी तक दुनियाभर में नियंत्रण के बाहर है. इसके साथ ही एक नए वेरियंट के उभरने का खतरा भी बना हुआ है. साइमनसन के मुताबिक इतिहास बताता है कि आम मान्यता है कि वायरस एक वक्त के बाद खुद ही हल्का पड़ जाता है, उनका कहना ये मान्यता गलत है. हालांकि नया म्यूटेशन हमेशा गंभीर नहीं होता है, महामारी अपनी उस अवधि में ही सबसे ज्यादा खतरनाक होती है, जब वायरस किसी नये होस्ट के अनूकूलित होता है.

कोविड के आने से पहले ही से अगर कोई आशा की किरण थी तो वो वैक्सीन ही थी जिससे पूरी तरह और लंबे वक्त तक सुरक्षा मिलती है जैसे बचपन में वैक्सीन लगने से पोलियो जैसी बीमारी पर रोकथाम लग सकी.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के सेंटर फॉर रिफरेंस एंड रिसर्च ऑन इन्फ्लूएंजा की निदेशक कांता सुब्बाराव का कहना है कि दुनियाभर के मामले बहुत ज्यादा हैं और म्यूटेशन लगतार हो रहा है. इस महामारी में संक्रमण का मामला बहुत ज्यादा बड़ा है, इस वजह से वायरस को समझ पाना बेहद मुश्किल हो रहा है. नतीजतन, कोविड फ्लू की तरह हो सकता है जिसकी तरह वायरस के खुद में विकास करते रहने तक लगातार वैक्सीन के टॉपअप लेते रहे जाएं.

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