आकाशवाणी : साँस्कृतिक जागरण का एक विश्वसनीय माध्यम 

आकाशवाणी : साँस्कृतिक जागरण का एक विश्वसनीय माध्यम

 

प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी के चिंतन से नये आयाम भी

 

निसंदेह आधुनिक भारत में आज सोशल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की व्यापकता से आकाशवाणी का आकर्षण प्रभावित हुआ है। लेकिन जन सामान्य के बीच आकाशवाणी का महत्व कम नहीं हुआ है । आकाशवाणी ने भारत की साँस्कृतिक विशेषताओं और विविधता को प्राथमिकता तब भी दी थी जब भारत स्वतंत्र नहीं था । इस विशेषता को जानकर ही प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने अपनी “मन की बात” केलिये आकाशवाणी को प्राथमिकता दी । और आधुनिकता के कुछ नये आयाम जोड़े।

स्वतंत्रता के बाद भारत ने अपनी आधुनिक यात्रा आरंभ की । नये भारत के निर्माण में उन संस्थाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है जिन्होंने स्वतंत्रता के पूर्व भी जन सामान्य के बीच भारत की साँस्कृतिक महत्ता जीवन्त रखी । इनमें आकाशवाणी की भूमिका महत्वपूर्ण है । आकाशवाणी ने भविष्य की दीवार पर उभरते चित्रों को देखकर साँस्कृतिक जागरण का कार्य आरंभ कर दिया था। आकाशवाणी ने भारत की साँस्कृतिक विविधता और विशेषता जो कार्यक्रम प्रसारित किये उससे सामाज में अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति आत्मविश्वास का जागरण हुआ। यही जाग्रति पहले स्वतंत्रता संग्राम में जन भागीदारी और अब भारत राष्ट्र के स्वत्व जागरण का माध्यम है। यह भारतीय समाज जीवन में स्वत्व और साँस्कृतिक चेतना की जाग्रति ही तो है कि आज भारत पुनः अपने खोये हुये परम वैभव को प्राप्त करने की ओर बढ़ रहा है । संपूर्ण विश्व भारत के साँस्कृतिक और सामाजिक मूल्यों की ओर आकर्षित हो रहा है । परंपराओं के प्रति अपनत्व का भाव जाग्रत करने में आकाशवाणी की भूमिका महत्वपूर्ण रही है । अंग्रेजीराज में आकाशवाणी ने भारत की क्षेत्रीय और आँचलिक विविधता पर जो कार्यक्रम प्रसारित किये, सतही तौर पर तो वे केवल मनोरंजन के लगते थे लेकिन उन प्रसारणों से भारतीय समाज जीवन में अपनी परंपराओं के प्रति आत्मविश्वास जागा और वही अब स्वत्व चेतना का आधार बना। आकाशवाणी ने समय के साथ अपने के प्रसारणों की विविधता में निरंतर वृद्धि की । भारत का कोई क्षेत्र, कोई भाषा और कोई स्थानीय बोली ऐसी नहीं जिसमें आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रसारित न होते हों।आज 23 भाषाओं और 146 बोलियों में आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। राष्ट्र, समाज और जीवन का ऐसा कोई विषय नहीं जिसे आकाशवाणी ने अपने प्रसारण में शामिल न किया हो । प्रत्येक विषय को व्यापक बनाया । साहित्य में गीत, कविता, कवि गोष्ठी, लघुकथा, व्यंग, कहानी, एकांकी आदि सब प्रसारित हुये । भारत के प्रमुख साहित्कारों की जीवनी, लेखन शैली तथा कृतियों से परिचित कराया । बदलते मौसम की विशेषता और उसका स्वास्थ्य पर पड़ने वाला प्रभाव, बीमारियाँ और बीमारी से बचने के उपाय विशेषज्ञों की वार्ताओं के माध्यम से समझाये, इसमें केवल मनुष्य ही नहीं पालतू पशु पक्षि संरक्षण के कार्यक्रम भी प्रसारित होते हैं । किस मौसम में कौनसी फसल, फल सब्जी, उपज बढ़ाने के तरीके, यदि कीट पतंगों से फसलों के नुक्सान की आशंका हो तो किसानों को सलाह भी दी गई। छात्र, युवा, महिला, किसान आदि सभी वर्ग समूह केलिये कार्यक्रम और समय निर्धारित किये ।

आज भले समाज जीवन में सोशल मीडिया व्यापक हो रहा है, रोज नये न्यूज चैनल सामने आ रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया की इस व्यापकता से आकाशवाणी का विषय जनचर्चा में तो कम हुआ है लेकिन उसकी विश्वसनीयता और गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं आया है। विश्व में सर्वश्रेष्ठ राष्ट्र होने की स्पर्धा में अग्रणी भारत के साठ प्रतिशत से अधिक लोगों के जीवन में आज भी आकाशवाणी ही उपयोगी है । सुदूर ठेट ग्रामीण क्षेत्रों, कस्बों और पर्वतीय अँचल में बसी बस्तियों में सूचना या समाचार ही नहीं मनोरंजन और स्थानीय समस्याओं के समाधान के उपाय जानने का माध्यम आकाशवाणी ही है। आकाशवाणी केवल मनोरंजन या सनसनी फैलाने वाले समाचारों से “टीआरपी” बढ़ाने की जुगत में नहीं रहती वह भारत की संस्कृति और स्थानीय एवं क्षेत्रीय विशेषताओं से पूरे भारत को परिचित कराने की महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है । प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी के इस महत्व को समझा। इसीलिए उन्होंने अपनी “मन की बात” के प्रसारण केलिये आकाशवाणी को माध्यम बनाया । प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी भारत को संसार के विकसित राष्ट्रों की पंक्ति में अग्रणी बनाने का संकल्प लेकर कार्य कर रहे हैं। उनका चिंतन व्यापक और बहुआयामी है । उनकी प्राथमिकताओं से यदि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय यान पहुँचा है, आधुनिक आयुध निर्माण में आत्मनिर्भर होने की दिशा में कदम बढ़ाये हैं। संसार के आधुनिकीकरण की इस स्पर्धा के साथ संसंद सीढ़ियों को दंडवत, नये संसद भवन में संगोल की स्थापना साँस्कृतिक परंपराओं का सशक्तिकरण है । मोदी जी उन परंपराओं और विधाओं का संरक्षण भी कर रहे हैं जिनसे भारत की पहचान है । उनकी इन्ही प्राथमिकताओं में से एक आकाशवाणी भी है । श्रीनरेंद्र मोदी ने अपनी “मन की बात” के लिये आकाशवाणी को ही प्राथमिकता दी और आकाशवाणी के आधुनिक स्वरूप प्रदान करने की पहल भी आरंभ की । अब देश के बीस राज्यों 91 स्थानों पर 100 वाट की क्षमता के लो पॉवर एफएम ट्रांसमीटर स्थापित हो गये हैं। इससे आकाशावाणी के ट्रांसमीटरों के नेटवर्क की संख्या 524 से बढ़कर 615 हो गई है।

विषय कोई भी हो वह मनोरंजन का हो या शिक्षा, साहित्य, स्वास्थ्य, कृषि, युवा, महिला, लोक संस्कृति, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के किसी सामयिक विषय या घटनाओं का हो । इससे संबंधित संगोष्ठियों और अपने प्रसारण के अन्य स्वरूप में आकाशवाणी सदैव क्षेत्रीय भाषा और स्थानीय बोली का ही समावेश करती है । इससे स्थानीय एवं विषय से संबंधित जन मानस अपनी आत्मीयता अनुभव करता है । देश के सुदूर पर्वतीय और वन क्षेत्र की बस्तियों में केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा लिये गये निर्णयों की जन सामान्य तक जानकारी पहुंचाने का भी आकाशवाणी महत्वपूर्ण साधन है । इसको प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की “मन की बात” के प्रसारण से समझा जा सकता है । आकाशवाणी के माध्यम से ही प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र मोदी की “मन की बात” जन जन तक पहुंची। सुदूर वनग्रामों, पर्वतीय अँचल में निवास करने वाले लोगों ने भी मन की बात सुनी । इससे भारत में स्वच्छता और स्वास्थ्य संबंधी जन चेतना का वातावरण बना । परिणामस्वरूप इससे संबंधित योजनाओं के क्रियान्वयन में कीर्तिमान बना । स्वतंत्रता के बाद जन कल्याण की अनेक योजनाएँ बनीं। लेकिन क्रियान्वयन का जो कीर्तिमान मोदी जी के स्वच्छता अभियान, हर घर नल, हर घर शौचालय, आयुष्मान कार्ड, उज्ज्वला योजना आदि का बना वैसा इससे पहले किसी का नहीं। इसका कारण मोदीजी द्वारा “मन की बात” में बार बार इन योजनाओं को दोहराना है । आकाशवाणी ने केवल मन की बात के “सीधे” प्रसारण के बाद अपना कर्त्तव्य पूरा नहीं कर लिया । अपितु उनमें वर्णित योजनाओं एवं विन्दुओं पर विशेषज्ञों के साथ विमर्श भी किया । यही कारण है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन उन क्षेत्रों में भी देखने को मिला जहाँ समाचारपत्र अथवा टेलीविजन की पहुँच नहीं है ।

 

रेडियो और आकाशवाणी का इतिहास

 

आकाशवाणी भारत में रेडियो के नाम का रूपांतरण है । विश्व में रेडियो का अविष्कार वैज्ञानिक गुग्लिल्मो मोरकोनी ने 1890 में किया था । 1893 में वैज्ञानिक निकोला टेस्ला ने सेंट लुइस में पहला वायरलेस रेडियो का अविष्कार किया । 1896 में गुग्लिल्मो मार्कोनी को वायरलेस रेडियो का पेटेंट मिला और 24 दिसंबर 1906 से विश्व में रेडियो का प्रसारण आरंभ हुआ । रेडियो प्रसारण का यह कार्य कैनेडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेसेंडन ने रेडियो ब्रॉडकास्टिंग द्धारा संदेश भेजकर किया था। संसार में पहले रेडियो स्टेशन की स्थापना 1918 में न्यूयॉर्क के हैब्रिज में हुई थी । रेडियो पर विज्ञापन प्रसारण की शुरुआत 1923 में हुई थी । 13 जनवरी को “यूनाइटेड नेशन्स रेडियो” आरंभ हुआ इसीलिए 13 जनवरी को “विश्व रेडियो दिवस” मनाया जाता है । हर वर्ष की थीम अलग होती है ।

भारत में रेडियो 1924 में आया । इसकी शुरुआत मद्रास प्रेसीडेंसी क्लब ने की और क्लब ने अपने स्तर पर रेडियो का प्रसारण 1927 तक किया था। समय के साथ रेडियो के प्रसारण से मुम्बई और कलकत्ता के कुछ व्यवसायी जुड़े और 1927 में मुम्बई एवं कलकत्ता में रेडियो प्रसारण आरंभ हुआ । 23 जुलाई 1927 को मुम्बई में भारत का पहला रेडियो स्टेशन आरंभ हुआ। वर्ष 1932 में अंग्रेज सरकार ने इसका प्रसारण अपने हाथ में ले लिया और संचालन के लिये अपने आधीन “इंडियन ब्रॉडकास्टिंग सर्विस” नामक विभाग गठित किया । 1936 में इसका नाम “ऑल इंडिया रेडियो” हुआ । आकाशवाणी का अंग्रेजी में यह नाम आज भी है । 1957 में इसका नाम “आकाशवाणी” हुआ । आकाशवाणी संस्कृत का शब्द है । भारतीय पुराणों के लगभग हर प्रसंग में शब्द आकाशवाणी मिलता है । रेडियो के लिये आकाशवाणी शब्द सबसे पहले उपयोग 1936 में हुआ था । यह कर्नाटक में एक निजी रेडियो स्टेशन की स्थापना का अवसर था । अपने समय के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एम वी गोपालस्वामी ने रेडियो को आकाशवाणी कहा जो जन सामान्य के उच्चारण में आया और 1957 में अधिकृत नाम के रूप सामने आया । भारत में 1995 में इन्टरनेट रेडियो आरंभ हुआ ।

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