अरबपतियों का देश बनता भारत

यह विडंम्बना नहीं तो क्या है कि एक तरफ देश की 98% आबादी अपने जीवन यापन के लिए संघर्ष कर रही है, मंहगाई और बेरोजगारी का दंश झेल रही है, वहीं 2% आबादी करोड़पति- अरबपति बनती जा रही है. ऐसा लगता है जैसे धन संचय कुछ लोगों के पास ही सिमट कर रह गया है और शायद देश भी इनसे ही चल रहा है.

आईआईएफल द्वारा अपनी रिपोर्ट वेल्थ हुरुन इंडिया रिच़ लिस्ट 2021 में कुछ चौंकाने वाली जानकारी देश के अमीरों के बारे में सामने आई:

  1. रुपये 1000 करोड़ से ऊपर की सम्पत्तिवाले अरबपतियों की संख्या पिछले 10 सालों में 98 से 1007 पर पहुँच गई. जो कि अगले 5 सालों में 3000 तक पहुँचने की उम्मीद है.
  2. मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु के साथ बी ग्रेड शहर जैसे फरीदाबाद, नोएडा, आगरा, लखनऊ, भोपाल, इंदौर, रायपुर, उदयपुर, कोयम्बटूर, सूरत, राजकोट, आदि से लोग अरबपतियों की लिस्ट में पहुँच रहे हैं.
  3. हाल में ही शेयर्स का आईपीओ लाने वाले जोमेटो के दीपेंद्र, तत्त्व चिंतन के अजय पटेल, क्लीन साइंस के अशोक बूब, जीआर इंफ्रास्ट्रक्चर के विनोद अग्रवाल, हैप्पीएस्ट मांइड के अशोक सूता शामिल हैं.
  4. ज्यादातर अरबपति कन्या और वृच्छिक राशि के है.
  5. टेक्नोलॉजी कंपनियां जैसे बाईजु, फार्मा इजी, आदि में मूल्यांकन तेजी से बढ़ रहा है.
  6. सबसे ज्यादा अरबपति फार्मा, केमिकल, सोफ्टवेयर, कपड़ा, आटो और रीयल एस्टेट सेक्टर से आ रहे हैं.

पुरानी कहावत है पैसा पैसे को खींचता है और आज भी यही सच है. देश में मध्यम वर्ग और गरीब बढ़ रहा है और साथ ही अरबपति भी.

क्या हम इसे देश की आर्थिक नीति और कर प्रणाली का खामी नहीं कह सकते जिसमें आय के वितरण में असंतुलन और अर्थव्यवस्था की चाबी कुछ अमीरों के हाथ में होना दर्शाता है?

जिन लोगों के पास पैसा है, वे ही योजनाएँ बनाकर पब्लिक से पैसे उगाही कर अमीरों की लिस्ट में शामिल हो रहे हैं.

अमीर बनना और अरबपति कहलाना या पैसे उगाहने के तरीकों से किसी को कोई बुराई या आपत्ति नहीं है लेकिन लिस्ट इस बात की भी जारी होनी चाहिए कि कितने लोगों ने देशहित में, आमजन की जिंदगी आसान करने में कितने अरब खर्च किए.

क्योंकि असली अरबपति तो वही है जो उस लिस्ट में शामिल हो, जिसमें यह बताया जाए कि उसने समाज पर कितने खर्च किए न कि वो जिन्होंने समाज से कितने जुटाए.

लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

Shares