*क्या 2 हजार रुपये के नोटबंदी का फैसला मोदी सरकार की केंद्र में करायेगा वापसी?*
*बड़ा सवाल: अब कैसे होगी 25 हजार करोड़ की भरपायी, जिम्मेदार कौन?*
*2016 में उत्तरप्रदेश चुनाव के ठीक पहले मोदी सरकार ने लिया था नोटबंदी का फैसला*
*चुनावों के पहले क्यों लेते हैं नरेन्द्र मोदी ऐसे फैसले?*
बीते सप्ताह भारत में एक बार फिर उस समय लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें बनना शुरू हो गई जब भारतीय रिजर्व बैंक ने इस बात की घोषणा की अब 02 हजार रुपये का नोट नहीं चलेगा। आरबीआई से जारी हुए इस आदेश के बाद देश भर में चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया और लोगों ने इसे दूसरी नोटबंदी करार दिया। किसी भी राष्ट्र के लिये नोटबंदी करना अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ देने के बराबर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी यह काम दो बार कर चुके हैं। यही कारण है कि दिन प्रतिदिन भारत आगे बढ़ने की बजाय अपनी आर्थिक स्थिति को सुधारने में ही अपना महत्वपूर्ण समय खराब कर रहा है। छह साल के अंदर मोदी सरकार द्वारा अपने ही फैसले (2 हजार के नोट के चलन) वापसी के आदेश ने कई सवाल खड़े कर दिये हैं। सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आखिर ठीक विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव से पहले आखिर ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गई कि मोदी सरकार को यह फैसला लेना पड़ा। अगर फैसला लेना ही था तो कर्नाटक चुनाव के पहले क्यों नहीं लिया। कहीं ऐसा तो नहीं कि नरेन्द्र मोदी की रणनीति का शिकार एक बार फिर दूसरी राजनैतिक पार्टियां होने वाली हैं। आपको बता दें कि 2000 का नोट छापने के लिए सरकार ने 25 हजार करोड़ रूपये खर्च किये गए थे। अब इन नोटों को बंद करके 25 हजार करोड़ रूपये जो छापने में खर्च किये थे वह तो बेकार गए। बड़ा सवाल है कि आखिर इन 25 हजार करोड़ जो खराब हुए हैं उसके लिए कौन जिम्मेदार है? चुनावों के पहले मोदी सरकार इस तरह के फैसले लेकर जनता के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियों को भी परेशान करती है। ऐसे फैसले लेकर मोदी सरकार अपने राजनीतिक हित भी साधना चाहती है।
*इसलिये उठने लगे हैं सवाल*
अगर हम 2016 में पहली बार हुई नोटबंदी का इतिहास देखे तो उस समय 2018 के लोकसभा चुनाव होने को थे और कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव प्रस्तावित थे। सबसे महत्वपूर्ण चुनाव था उत्तर प्रदेश विधानसभा का। इस चुनाव पर देश की नजर थी। मोदी सरकार ने ठीक उत्तर प्रदेश चुनाव के पहले नोटबंदी का फैसला करके उत्तर प्रदेश की राजनैतिक पार्टियों की कमर तोड़ दी थी। नोटबंदी के बाद इस मसले पर कई प्रश्न भी खड़े हुए, लोगों ने नाराजगी भी व्यक्त की, कुछ ने इसे राजनैतिक साजिश बताई लेकिन तमाम विरोध के बाद भी कुछ नहीं हुआ और परिणाम यह निकला की उत्तर प्रदेश में भाजपा ने बहुमत प्राप्त कर सरकार बनाई।
*मायावती को हुआ था बड़ा नुकसान*
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव और नोटबंदी दोनों एक साथ होने से अगर किसी राजनैतिक पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ तो वह थी बहुजन समाज पार्टी। इस पार्टी की प्रमुख मायावती ने मोदी सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया। लेकिन मोदी सरकार ने मायावती को चुप कराने के लिये उन पर तमाम तरह की जांच करना आरंभ कर दिया, उन पर तमाम भ्रष्टाचार के आरोप लगाये। अपने ऊपर लगे इन आरोपों को देखते हुए मायावती अंततः शांत हो गई और सभी विरोध के सुर भी शांत हो गये।
*लोकसभा चुनाव में दिखेगा असर*
राजनैतिक गुरुओं की मानें तो अगले एक वर्ष में लोकसभा चुनाव होना प्रस्तावित हैं। ऐसे में दो हजार की नोटबंदी का फैसला राजनैतिक पार्टियों के लिये बड़ा सदमा है। क्योंकि चुनाव की तैयारी के मद्देनजर पार्टियों ने पार्टी फंड के नाम पर अरबों रुपये दो हजार के नोटों की गड्डी के रूप में अपने पास जमा कर रखा था। लेकिन केंद्र सरकार और रिजर्व बैंक के एक फैसले ने उन्हें सख्ते में ला दिया है। अब देखने वाली बात यह है कि क्या उत्तरप्रदेश चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार इस फैसले के साथ दोबारा सत्ता में वापसी करेगी या फिर उसे भी सत्ता के बाहर होने का रास्ता देखना पड़ेगा।
*आरबीआई ने दी इस तरह की सफाई*
नोटबंदी किये जाने के संबंध में आरबीआई ने हर बार की तरह इस बार भी एक रटा-रटाया जबाव तैयार किया। जिसमें उन्होंने कहा कि 2000 के करीब 89 प्रतिशत नोट मार्च 2017 से पहले ही जारी हो गए थे। ये नोट चार-पांच साल तक अस्तित्व में रहने की उनकी सीमा पार कर चुके हैं या पार करने वाले हैं। 31 मार्च 2018 को 6.73 लाख करोड़ रुपये के नोट बाजार के सर्कुलेशन में थे। यानी मार्केट में मौजूद कुल नोटों की हिस्सेदारी पहले 37.3 प्रतिशत थी। 31 मार्च 2023 तो यह आंकड़ा घटकर 3.62 लाख करोड़ रुपये रह गया। यानि चलन में मौजूद कुल नोटों में से दो हजार रुपये की नोटों की हिस्सेदारी सिर्फ 10.8 प्रतिशत ही रह गई है।
*2 हजार रुपये के नोट लाने का उद्देश्य पूरा*
जब नोटबंदी हुई थी तब सरकार ने 2000 रुपये के नए नोट लाए थे। नोटबंदी में 1000 रुपये के नोट को बैन कर दिया गया था। बाजार में उतारने के बाद नोट चलन में लाने का उद्देश्य भी पूरा हो गया है। साल 2018-2019 में सरकार ने 2 हजार रुपये के नोट की छपाई बंद कर दी थी। आरबीआई के मुताबिक 2000 रुपये के नोट आमतौर पर लेनदेन में बहुत ज्यादा इस्तेमाल में नहीं कर रहे हैं। आरबीआई की क्लीन नोट पॉलिसी के तहत यह फैसला लिया गया है कि दो हजार रुपये के नोटों को चलन से हटा लिया जाए।