उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी घमासान भले ही शुरू हो चुका है लेकिन इसके अलावा भी उप्र में एक युद्ध चल रहा है। यह युद्ध है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच। उत्तरप्रदेश का चुनाव भले ही समाजवादी पार्टी और भाजपा के बीच बताया जा रहा हो लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ उत्तरप्रदेश के चुनाव को योगी आदित्यनाथ बनाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में देख रहे हैं। यही कारण है कि उप्र चुनाव में टिकिट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार में मुददों को लेकर मोदी और योगी के बीच समानता नहीं दिखाई दे रही है। कहा जा सकता है कि मोदी टीम को योगी की सफलता और प्रसिद्धी खटकने लगी है। मंचों पर भले ही एक-दूसरे की झूठी तारीफों के पुल बांधते दिखते हो लेकिन अंदर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योगी आदित्य नाथ को किनारे लगाने की जुगत में हैं। यह भी सच है कि यदि योगी मॉडल 2022 में यूपी सफल हुआ तो 2024 में दिल्ली में मोदी मॉडल को समस्या आ सकती है।
संघ की नजरों में भी योगी का कद काफी बढ़ गया है। संघ के अनुसार योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए अच्छा कार्य किया है और आज प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति काफी हद तक कंट्रोल है। इसी बजह से योगी आदित्यनाथ को लेकर संघ की इस संतुष्टि ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सकते में डाल दिया है। क्योंकि मोदी बहुत अच्छे से जानते हैं कि यदि यूपी में योगी आदित्यनाथ दोबारा मुख्यमंत्री बनते हैं तो निश्चित ही संघ 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री के पद की दावेदारी आदित्यनाथ को सौंपने में विचार कर सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह से योगी आदित्यनाथ ने पिछले पांच सालों में उत्तरप्रदेश में विकास का कार्य किया, कानून व्यवस्था को दुरस्त किया, हिंदुत्व को बढ़ावा दिया हो। उनके इस कार्य से संघ पूरी तरह संतुष्ट है। संघ चाहता है कि योगी आदित्यनाथ को एक बार फिर उत्तरप्रदेश की कमान मिलनी चाहिए। योगी की सफलता से अपनी राजगद्दी जाने का आभास होते ही प्रधानमंत्री मोदी ने राजनीति की बिसात में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ चाल चलना शुरू कर दिया है।
इसलिए घबरा गये हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
कभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जुगलबंदी को लेकर मिसाल पेश करने वाली भारतीय जनता पार्टी में फिर से अंतर्कलह की स्थिति कायम होती दिखाई दे रही है। यह अंतर्कलह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच है। जिस समय पूरा राज्य चुनाव के रंग में डूबा हुआ था उस समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जानबूझकर संसद में उत्तरप्रदेश के प्रवासी मजदूरों का मामला उठाया। ताकि सपा सहित अन्य राजनैतिक पार्टियां प्रवासी मजदूरों के मामले को मुद्दा बनाकर योगी आदित्यनाथ सरकार का विरोध कर सकें। जाहिर है कि यूपी के डेढ़ से दो करोड़ प्रवासी मजदूर देशभर के इलाकों में मजदूरी करने के लिए जाते हैं। लेकिन कोरोना के संकटकाल के दौरान लाखों मजदूरों को अपनी जान गवांना पड़ी। बचे हुए मजदूरों को न तो यूपी सरकार रोजगार दिला पाई और न ही उनके पक्ष में कोई कार्य किया। कुल मिलाकर मोदी ने जानबूझकर संसद में इस मुद्दे को उठाकर इस बात को साबित कर दिया कि भले ही संघ चाहता हो कि योगी आदित्यनाथ की छवि राष्ट्रीय स्तर पर बने लेकिन मोदी नहीं चाहते कि योगी का कद बढ़े।
योगी के लिए आसान नहीं होगी यूपी की राह
देखा जाये तो देश की प्रमुख राजनैतिक पार्टी के नेताओं के बीच अंर्तकलह देखने को मिल रही है, लेकिन यह भी सच है कि योगी आदित्यनाथ के लिए इस विधानसभा चुनाव को जीतना इतना आसान नहीं होगा। क्योंकि टिकट वितरण के दौरान भी दिल्ली में बैठे दिग्गज और चंद नेताओं ने मिलकर चुनाव टिकट वितरण कर डाला। इस पूरे मामले में योगी से राय नहीं ली गई। दिल्ली ने कई ऐसे प्रत्याशी को टिकट दे डाला जो पूरी तरह से नये हैं और पिछले विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर चुके 53 प्रत्याशियों में अधिकतर प्रत्याशियों के टिकट काट दिये गये। ऐसे में नये चेहरे को मौका देकर मोदी और अमित शाह द्वारा खेली गई यह चाल योगी आदित्यनाथ को मंहगी न पड़ जाये।
योगी को क्यों निपटाना चाहती है दिल्ली?
एक सवाल जो बार-बार मन में उठता है वह यह कि आखिर ऐसी क्या गलती हो गई योगी सरकार से कि दिल्ली उन्हें इस बार निपटाना चाहता है। यही नहीं यदि योगी सरकार दोबारा यूपी में सरकार बनाती है तो निश्चित ही केंद्रीय स्तर पर दो बड़े परिवर्तन देखने में आ सकते हैं। पहला केंद्रीय गृह मंत्रालय की कुर्सी अमित शाह से छीनी जा सकती है। दूसरा भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद भी बदला जा सकता है। वहीं, लखीमपुर में किसानों के एक्सीडेंट मामले में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे के खिलाफ योगी ने आनन-फानन में एसआईटी का गठन किया और बाद में उसके बेटे आशीष सिंह को तीन महीने से अधिक जेल भी हुई। यह मामला भी योगी के विरुद्ध बताया जा रहा है।
लेखक:विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन