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नियंत्रण से बाहर होती मंहगाई, सरकारी पैसे का सदुपयोग ही एकमात्र उपाय

सितंबर के मुकाबले अक्टूबर महीने में सब्जियों के दामों में तेजी देखी गई है। इसके पीछे देश के कई इलाकों में पिछले साल के मुकाबले भारी बारिश से खराब हुई फसल को जिम्मेदार माना जा रहा है।

साथ ही ऊंचे पेट्रोल और डीजल के दामों की वजह से ट्रांसपोर्ट की बढ़ी लागत के असर से भी दामों के स्तर बढ़ रहे हैं।

बढ़ती महंगाई को काबू करने के हाल ही में किए गए सरकारी प्रयास भी नाकाफी साबित हो रहे हैं।

सरकार ने इसी महीने खाद्य तेलों पर लगने वाली इम्पोर्ट ड्यूटी घटाई थी लेकिन विशेषज्ञों का आंकलन है कि इस कदम के बाद भी खाद्य तेलों की महंगाई दर दोहरे अंकों में बनी रहेगी।

आंकलन के मुताबित, देश में कुल जरूरत के मुकाबले 54 फीसदी से भी ज्यादा खाद्य तेलों का आयात किया जाता है।

मौजूदा समय में दुनियाभर में बढ़ती खपत के चलते इसके दाम बढ़े हैं।

वैश्विक अनुमान के मुताबिक फरवरी 2020 के मुकाबले जुलाई 2021 तक इनके दाम 60 फीसदी के करीब बढ़ चुके हैं।

सितंबर महीने में भी इसकी महंगाई में 30 फीसदी का इजाफा देखने को मिला है।

अक्टूबर में त्योहारी सीजन की मांग बढ़ने से दाम में ज्यादा नरमी के आसार कम ही हैं।

वैश्विक उठापटक, मौसम की मार और पेट्रोल डीजल के टैक्स पर सरकारी निर्भरता ने आम आदमी का जीवन यापन मुश्किल कर दिया है.

मंहगाई पर नियंत्रण न होना हमारे देश की प्रमुख समस्या रही है. सरकारें अपने चुनावी घोषणा पत्र में हर बार सौ दिन में मंहगाई कम करने का वादा कर चुनाव जीतती आई है लेकिन मंहगाई न कम हुई और न ही नियंत्रण में आई.

एकमात्र उपाय है सरकारी घोषणाएं, योजनाओं और खर्च का सदुपयोग हो ताकि सरकारी जरूरतें कम हो और उन्हें राजस्व की कम जरूरत पड़े.

प्रायः ये देखा गया है कि सरकारें चुनाव के लिए पैसे बांटती है जिसकी अर्थव्यवस्था में कोई उपयोगिता नहीं होती वरन् कोषालय और जनता पर बोझ होती है.

इसी तरह योजनाओं के क्रियान्वयन में कमी और भ्रष्टाचार जिससे जहाँ 100 रुपये का खर्च होना है वहाँ 300 रुपये खर्च होते हैं और इसका बोझ पेट्रोल डीजल पर टैक्स के माध्यम से जनता पर पड़ता है.

यह क्रम आजादी के बाद से चल रहा है और आज भी इसमें कोई बदलाव नहीं है तो हम कैसे अपेक्षा करें कि मंहगाई नियंत्रण में आ पाऐगी. जब तक सरकारी सोच, झूठे चुनावी वादों की तरफ लोगों का आकर्षण और चुनाव प्रक्रिया में सुधार नहीं होंगे तब तक न सरकारी जरूरतें कम होंगी, न पेट्रोल डीजल के दाम और न ही मंहगाई.

लेखक एवं विचारक: सीए अनिल अग्रवाल जबलपुर

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