counter create hit अमीरी और गरीबी की खाई | Madhya Uday - Online Hindi News Portal

अमीरी और गरीबी की खाई

अब से लगभग 60 साल पहले जब मैं प्रसिद्ध फ्रांसीसी विचारक पियरे जोजफ प्रोधों को पढ़ रहा था तो उनके एक वाक्य ने मुझे चौंका दिया था। वह वाक्य था- ‘सारी संपत्ति चोरी का माल होती है।’ दूसरे शब्दों में सभी धनवान चोर-डकैत हैं। यह कैसे हो सकता है, ऐसा मैं सोचता था लेकिन अब जबकि दुनिया में मैं गरीबी और अमीर की खाई देखता हूं तो मुझे लगता है कि उस फ्रांसीसी अराजकतावादी विचारक की बात में कुछ न कुछ सच्चाई जरुर है। कार्ल मार्क्स के ‘दास केपिटल’ और विशेष तौर से ‘कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो’ को पढ़ते हुए मैंने आखिर में यह वाक्य भी देखा कि ‘‘मजदूरों के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, सिर्फ उनकी जंजीरों के अलावा।’’ अब इन दोनों वाक्यों का पूरा अर्थ समझ में तब आने लगता है, जब हम दुनिया के अमीर और गरीब देशों और लोगों के बारे में गंभीरता से सोचने लगते हैं। अमीर, अमीर क्यों हैं और गरीब, गरीब क्यों है, इस प्रश्न का जवाब हम ढूंढने चलें तो मालूम पड़ेगा कि अमीर, अमीर इसलिए नहीं है कि वह बहुत तीव्र बुद्धि का है या वह अत्यधिक परिश्रमी है या उस पर भाग्य का छींका टूट पड़ा है। उसकी अमीरी का रहस्य उस चालाकी में छिपा होता है, जिसके दम पर मुट्ठीभर लोग उत्पादन के साधनों पर कब्जा कर लेते हैं और मेहनतकश लोगों को इतनी मजदूरी दे देते हैं ताकि वे किसी तरह जिंदा रह सकें। यों तो हर व्यक्ति इस संसार में खाली हाथ आता है लेकिन क्या वजह है कि एक व्यक्ति का हाथ हीरे-मोतियों से भरा रहता है और दूसरे के हाथ ईंट-पत्थर ही धोते रहते हैं ? हमारी समाज-व्यवस्था और कानून वगैरह इस तरह बने रहते हैं कि वे इस गैर-बराबरी को कोई अनैतिक या अनुचित भी नहीं मानता। इस समय दुनिया में जितनी भी कुल संपत्ति है, उसका सिर्फ 2 प्रतिशत हिस्सा 50 प्रतिशत लोगों के पास है जबकि 10 प्रतिशत अमीरों के पास 76 प्रतिशत हिस्सा है। यदि दुनिया की कुल आय सब लोगों को बराबर-बराबर बांट दी जाए तो हर आदमी लखपति बन जाएगा। उसके पास 62 लाख 46 हजार रुपए की संपत्ति होगी। हर आदमी को लगभग सवा लाख रु. महिने की आय हो जाएगी लेकिन असलियत क्या है? भारत में 50 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिनकी आय सिर्फ साढ़े चार हजार रु. महिना है याने डेढ़ सौ रु. रोज। करोड़ों लोग ऐसे हैं, जिनकी आय 100 रु. रोज भी नहीं है। उन्हें रोटी, कपड़ा और मकान भी ठीक से उपलब्ध नहीं हैं। शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन तो दूर की बात है। इन्हीं लोगों की मेहनत के दम पर अनाज पैदा होता है, कारखाने चलते हैं और मध्यम व उच्च वर्ग के लोग ठाठ करते हैं। अमीरी और गरीबी की यह खाई बहुत गहरी है। यदि दोनों की आमदनी और खर्च का अनुपात एक और दस का हो जाए तो खुशहाली चारों तरफ फैल सकती है।

वेदप्रताप वैदिक(वरिष्ठ पत्रकार)

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