_*’ मोहन राज ‘ के बावजूद राज्य में गूंजता रहे ‘ शिवराज ‘
*पांव पांव, एमपी की छांव*
_बेटे, बहु औऱ पत्नी को संग ले अपने संसदीय क्षेत्र में फ़िर पैदल निकल पड़े पूर्व मुख्यमंत्री चौहान
मोदी और विकसित भारत के संकल्प के बहाने एमपी की सियासत में फ़िर लौटे ‘ मामा
प्रदेश से किसी भी सूरत में ‘ राजनीतिक नाता ‘ टूटने नही देना नही चाहते शिवराज
_प्रतिदिन 25 किमी पैदल चल रहें पांव पांव भैय्या के नाम से पहचाने जाने वाले शिवराज_
*नितिनमोहन शर्मा:
मोह ‘ हैं कि ‘ मामा ‘ से छूटता नही। फ़िर मसला अपने राज्य का हो या राज्य की राजनीति का। बमुश्किल ‘ दिल्ली ‘ पहुँचे ‘ मामा ‘ रह रहक़र राज्य में लौट आने को आतुरता से बच नही पा रहें। राज्य से ‘ खानाबदोश ‘ होने से पहले ताबड़तोड़ बना ‘ मामा ‘ का घर उनकी गैरमौजूदगी में आबाद होता, उसके पहले ही ‘ मामा ‘ ही लौट आये। वह भी अपने पुराने चिरपरिचित अंदाज़ में। यानी वही 90 के दशक वाले ‘ पांव पांव भैय्या ‘ बनकर। इसी उपनाम से उनकी राजनीतिक छवि बनी थी, जो उनके संसदीय इलाक़े में आज भी बरकरार हैं। पदयात्री बनकर लौटे ‘ मामा ‘ का पुराने अवतार में अवतरित होने का ऐलानिया मक़सद तो ‘ विकसित भारत का मोदी संकल्प ‘ बखाना गया हैं लेक़िन असली मकसद तो वे ही जाने इस पुनः पदयात्रा का। यात्रा जारी हैं। बड़ी ख़ामोशी से। लेक़िन राज्य की राजनीति में हलचल हैं। कमलदल की सियासत इस बेमौसम की पदयात्रा के सियासी मायने तलाश रही हैं लेक़िन किसी मुक़ाम तक नही पहुचीं हैं।
_बात हैं प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र विदिशा में एक बार फ़िर से पदयात्रा शुरू कर दी हैं। राजधानी भोपाल से सटे सीहोर से उन्होंने इसका आगाज किया है, जो उनके संसदीय क्षेत्र का अहम हिस्सा हैं। 1990-91 में वे ऐसी ही पदयात्रा के ज़रिए अपने राजनीतिक इलाक़े में पांव पांव भैय्या के नाम से मशहूर हो गए थे। तब दौर प्रदेश में भाजपा की पहचान व साख को स्थापित करने का था। अब तो चहुओर भाजपा का ही डंका बज रहा हैं। देश-प्रदेश में ट्रिपल इंजिन की सरकारें गतिमान हैं। राज्य में दो दशक से कमलदल का ही राजपाट हैं। बावजूद इसके ‘पांव पांव भैया’ फ़िर अपने पांव लेकर सड़क पर उतर गए। इस बार साथ मे बेटे-बहु औऱ पत्नी भी हैं और पदयात्रा भी गर्मजोशी से भरी हुई हैं। ‘ मामा ‘ भी पूरे ओज़ व जोश के साथ मैदान में हैं।_
*_25 साल बाद पदयात्रा कर रहें शिवराज रोज 25 किमी भी चल रहे हैं। यात्रा का मक़सद वे विकसित भारत के मोदी संकल्प को गांव गांव पहुँचाना बता रहें हैं। लेक़िन ऐसा कोई अभियान न तो पार्टी स्तर पर शुरू हुआ है न केंद्र की सरकार की तरफ़ से ऐसा कुछ आंदोलन छेड़ा गया हैं। भारी भरकम केंद्रीय मंत्रिमंडल के एकमात्र सदस्य शिवराज ही मोदी का नाम लेकर मैदान में उतर गए हैं। उनके इस ‘ एकाकी ‘ मोदी प्रेम को कोई समझ नही पा रहा कि ‘ खेती किसानी ‘ से जुड़े देश के बड़े मसले छोड़ शिवराज सिंह पुनः अपने संसदीय क्षेत्र में क्यो सक्रिय हो गए? वह भी ऐसे वक्त जब उनकी पार्टी व केंद्र-राज्य की सरकारें ‘ ऑपरेशन सिंदूर ‘ का रंग गहरा व गाढ़ा करने में दिनरात जुटी हुई हैं। अभी तो उन्हें सांसद व मंत्री बने सालभर भी नही हुआ और आम चुनाव को 4 बरस शेष हैं। फ़िर ‘ मामा ‘ पदयात्री क्यों एकाएक बन गए?_*
_’ मोहन राज ‘ के बावजूद राज्य में फ़िर ‘ शिवराज ‘ का कारण अब तक समझ नही आ रहा। राजनीतिक पंडित भी गुणा भाग। लगा रहे हैं कि न कोई चुनाव, न पार्टी का कोई अभियान। फ़िर पैदल पैदल सड़कों पर, गांव की पगडंडियों पर क्यो निकल पड़े प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। वह भी अपनी ‘ राजनीतिक विरासत ‘ को साथ लेकर? क्या वे राज्य की राजनीति से बना नाता या मोह छोड़ नही पा रहें? या फ़िर मध्यप्रदेश की राजनीति में लौट रहें या लौटना चाहते हैं? एक सवाल ये भी है कि वे ‘ मोहन राज ‘ में राज्य की जनता को ‘ शिवराज ‘ भूलने नही देना चाहते? ऐसे कई किंतु परन्तु के साथ राजधानी में इस पदयात्रा के चर्चे दबी जुबान हर तरफ़ चल भी रहें हैं लेक़िन नर्मदा किनारे वाले ‘ मामा ‘ के मन की थाह कोई ले नही पा रहा, जैसे ‘ जेत ‘ में ‘माई नरबदा’ की थाह कोई जान नही पाता कि वह कितनी गहरी हैं।_