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हरीश रावत ने सिख समुदाय के भावना को ठेस पहुंचाने के लिए मांगी माफी

कल पंजाब के कांग्रेस में हो रहे अंदरूनी विवाद को सुलझाने चंडगढ़ पहुंचे प्रभारी हरीश रावत (Harish Rawat) ने सिद्धू और उनकी टीम के 4 वर्किंग प्रेसिडेंट्स की तुलना सिख धर्म के महान पंच प्यारों से कर दी थी. जिसके बाद इस मामले पर विवाद खड़ा हो गया है. कई नेताओं ने हरीश रावत के इस कमेंट को सिख भावनाओं के अपमान से जोड़ उनपर मुकजमा करने की भी बात कही.

इस बीच हरीश रावत ने अपने फेसवुक पोस्ट के जरिए इस शब्द के प्रयोद और सिख भावनाओं को आहत करने के लिए माफी मांगी है. उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा, ” कभी कभी आप किसी को सम्मान या आदर व्यक्त करते हुए कुछ ऐसे शब्दों का उपयोग कर देते हैं जो आपत्तिजनक होते हैं. मुझसे भी कल अपने माननीय अध्यक्ष व चार कार्यकारी अध्यक्षों के लिए पंज प्यारे शब्द का उपयोग करने की गलती हुई है. मैं देश के इतिहास का विद्यार्थी हूं और पंज प्यारों के अग्रणी स्थान की किसी और से तुलना नहीं की जा सकती है. मुझसे ये गलती हुई है, मैं लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.

उन्होंने कहा कि मैं प्रायश्चित स्वरूप अपने राज्य के किसी गुरुद्वारे में कुछ देर झाड़ू लगाकर सफाई करूंगा. मैं सिख धर्म और उसकी महान परंपराओं के प्रति हमेशा समर्पित भाव और आदर भाव रखता रहा हूँ. मैंने चंपावत जिले में स्थित श्री रीठा साहब के मीठे-रीठे, देश के राष्ट्रपति से लेकर, न जाने कितने लोगों को प्रसाद स्वरूप पहुंचाने का काम किया है. जब मुख्यमंत्री बना तो श्री नानकमत्ता साहब और रीठा साहब, जहां दोनों स्थानों पर श्री गुरु नानक देव जी पधारे थे, सड़क से जोड़ने का काम किया. हिमालयी सुनामी के दौर में हेमकुंड साहिब यात्रा सुचारू रूप से चल सके, वहां मेरे कार्यकाल में हुये काम को आज भी देखा जा सकता है. समय कुछ और मिल गया होता तो घंगरिया से हेमकुंड साहब के मार्ग तक रोपवे का निर्माण भी प्रारंभ कर दिया होता. मैं पुनः आदर सूचक शब्द समझकर उपयोग किये गये अपने शब्द के लिये मैं सबसे क्षमा चाहता हूँ.

हरीश रावत कल पहुंचे थे चंडीगढ़

दरअसल कल हरीश रावत ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिद्धू और उनके चार वर्किंग प्रेसिडेंट्स (Harish Rawat Meet Working Presidents) से मुलाकात की थी. इस दौरान सभी की तुलना उन्होंने सिख धर्म के महान पंच प्यारों (Panch Pyare) से कर दी. यह सिख धर्म के मुताबिक श्री गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख धर्म की शुरुआत के समय पर पांच ऐसे लोगों को चुना था जो गुरु और धर्म के लिए कुछ भी कर सकें. जो धर्म के लिए अपनी जान न्योछावर करने से भी पीछे न हटें

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